आज इस देश को अपने सांसदों पर बलिहारी होना चाहिए। अबतक जो कुछ वे संसद से बाहर करते आए हैं आज वही 'दुस्साहस ' उन्होंने संसद के भीतर अंजाम देकर देश को साफ तौर पर यह संदेश देने की कोशिश की है कि उनकी करनी और कथनी का अंतर किस तेजी से घटता जा रहा है। आज के तमाम अखबारों और टीवी चैनलों ने 22 जुलाई के इस दिन को भारतीय लोकतंत्र का काला दिन करार दिया है। मुझे लगता है यह हमारे सांसदों, उनकी निष्ठा और इच्छाशक्ति का अपमान है। जब मनमोहन और सोनिया गांधी की सरकार ने संसद में विश्वास मत पाने के लिए हत्या समेत तमाम गैरकानूनी हरकतों के लिए जेल में बंद तमाम सांसदों को संसद में बुलाने का फैसला किया था देश को तभी समझ जाना चाहिए था कि उन्हें इस विश्वास की क्या कीमत चुकानी पड़ सकती है। अब तो उन्हें खामोशी से अपने घरों में बैठकर इस तमाशे को देखने और अगले चुनावों में एक बार फिर इसी तमाशे का हिस्सा बनने के लिए तैयार हो जाना चाहिए।
हमारी सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि हम जिस फसल के बीज बोते हैं उसकी फसल होने पर नाक, भौं सिकोड़ते हैं और पानी, खाद देने वालों को कोसते हैं। जब हम हर दिन ट़ेनों में बिना रिजर्वेशन कराए टीटी को पैसे देने में शर्मिंदा नहीं होते, बिना हैलमेट पहने बाइक की सवारी करने पर पुलिस की हथेली चुपचाप गर्म करने में बेशर्म बन जाते हैं, ड़ाइविंग लाइसेंस बनवाने कभी आरटीओ नहीं जाते, एजेंट को पैसे देकर खुश हो जातें हैं कि घर बैठे लाइसेंस मिल गया, रास्ते में सड़क हादसा देखकर भी अनदेखा करतें हैं कि कहीं गवाही न देनी पड़ जाए, तमाम सरकारी आफिसों में बाबुओं को इसलिए ज्यादा पैसे खिलाते हैं कि काम जल्द हो जाए तो उस वक्त हम इन सांसदों की हरकतों के लिए बेहतर जमीन तैयार कर रहे होते हैं। हम बहाने बनाते हैं कि नेताओं के पदचिन्हों पर ही जनता चलती है लेकिन हम केवल उन्हीं नेताओं के पदचिन्ह ढूंढते हैं जो सबसे ज्यादा काले और गहरे हों, जिन्हें माथे पर सबसे ज्यादा दाग हों। क्योंकि हमें पता है कि ईमानदारी आज एड़स से भी घातक ऐसी बीमारी बन गई है जिसके लगने पर घर, परिवार और देश का विनाश संभव है। हमें तो आज खुश होना चाहिए कि सांसदों ने संसद के भीतर एक करोड़ के नोटों का सार्वजनिक प्रदर्शन कर पूरे देश के सामने आगे का रास्ता खोल दिया है। अब हमें संभ्रांत और कुलीन घरों की बहुओं की तरह घूंघट के भीतर रहकर अपनी वासनाओं को अंदर ही अंदर दबाते रहने की जरूरत नहीं है, अब हम खुलेआम लेन देने का खेल खेल सकते हैं। देश के इस हमाम में क्या नेता और क्या प्रजा। जब तक हमाम में पानी है सभी को नंगे होकर जमकर नहाना चाहिए। जब पानी खत्म हो जाए तो एक दूसरे का खून बहाना शुरू कर देना चाहिए और उसमें डुबकी लगानी चाहिए। और अंत में जब सब खत्म हो जाएगा शायद तब खून की इन सूखी पपडियों के ऊपर फिर से ईमानदारी का एक नया अंकुर फूटे।
1 comment:
अफसोसजनक....दुखद
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