Wednesday, July 21, 2010

पत्र्कारिता में आपातकाल

प्रेस विज्ञप्ति




विषय- अघोषित आपातकाल में पत्रकारों की भूमिका

संदर्भ- स्वतंत्र पत्रकार हेमचंद पांडेय की कथित मुठभेड़ पर उठे सवाल



नई दिल्ली। 20 जुलाई। गांधी शांति प्रतिष्ठान में ‘जर्नलिस्ट फॉर पीपुल’ की ओर से ‘अघोषित आपातकाल में पत्रकारों की भूमिका’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

इस विषय पर बोलते हुए आर्य समाज के नेता और समाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेष ने कहा कि आज देश में आपातकाल जैसी स्थितियां हैं। स्वतंत्र पत्रकार हेमचंद्र पांडेय और भाकपा (माओवादी) के प्रवक्ता कॉमरेड आजाद की कथित मुठभेड़ पर सवाल उठाते हुए स्वामी अग्निवेष ने उनकी शहादत को सलाम पेश किया। और कहा कि इस इस दौर में पत्रकारों को साहस के साथ खबरें लिखने की कीमत चुकानी पड़ रही है।

‘इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली’ के सलाहकार संपादक और सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने स्वतंत्र पत्रकार हेमचंद्र पांडेय और भाकपा माओवादी के प्रवक्ता आजाद की हत्या को शांति प्रयासों के लिए धक्का बताया। गौतम ने कहा कि आज राजसत्ता का दमन अपने चरम पर है। आजादी का ख्याल एक है। इसे अलग-अलग टुकड़ों में नहीं देखा जा सकता। देश के अलग-अलग हिस्से में सरकार अलग-अलग तरीके से पत्रकारों का दमन कर रही है। माओवादियों के संघर्ष, उत्तरपूर्व के संघर्ष और कश्मीर के संघर्ष को एक करके देखना होगा।


संगोष्ठी को संबोधित करते हुए ‘समकालीन तीसरी दुनिया’ के संपादक आनंद स्वरूप वर्मा ने कहा कि अब सरकारें अपने बताए हुए सच को ही प्रतिबंधित कर रही हैं। और जो भी पत्रकार इसे उजागर करने की कोशिश करता है उसे गोली मार दी जाती है। या देशद्रोही करार दे दिया जाता है। सही सूचनाएं पहुंचाने वाले संगीनों के साए में जी रहे हैं। उन्होने इस स्थिति के विरोध के लिए संगठन बनाने की जरूरत पर बल दिया।

इस मौके पर अंग्रेजी पत्रिका ‘हार्ड न्यूज’ के संपादक अमित सेन गुप्ता भी मौजूद थे। उन्होने कहा कि आज के दौर में पत्रकारिता कारपोरेट घरानों के इशारे पर संचालित हो रही है। खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की स्थिति और भी बुरी है। न्यूज चैनल के संपादक बॉलीवुड सितारों के गलबहियां करते नजर आते हैं। और अभिनेताओं से खबर पढ़वाई जाती है। नेता-कारपोरेट घरानों और मीडिया के गठजोड़ पर बोलते हुए अमित ने कहा कि देश के अलग अलग हिस्से में हुई घटनाओं को अलग अलग तरीके से पेश किया जाता है। खासकर एक संप्रदाय विशेष के लिए मुख्यधारा की मीडिया पूर्वाग्रह से ग्रस्त है। गुजरात दंगों और बाटला हाउस एनकाउंटर की रिपोर्टिग पर भी अमित सेन ने सवाल उठाए।

कवि और सामाजिक कार्यकर्ता नीलाभ ने कहा कि आज के दौर में पत्रकारिता के मूल्यों को बचाने के लिए बड़े पैमाने पर ‘सांस्कृतिक आंदोलन’ की जरूरत है। सरकारी दमन के मसले पर हिंदी के लेखकों की चुप्पी पर सवाल उठाते हुए उन्होने संस्कृति-कर्मियों, कलाकारों, चित्रकारों की एकता और आंदोलन की जरूरत पर बल दिया।

गोष्ठी को पत्रकार पूनम पांडेय ने भी संबोधित किया और कहा कि आपातकाल केवल बाहर ही नहीं है बल्कि समाचार पत्रों के दफ्तरों में भी पत्रकारों को एक किस्म के अघोषित आपातकाल का सामना करना पड़ता है।

इस मौके पर हिंदी के तीन अखबारों (नई दुनिया, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण) के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास किया गया। इन अखबारों ने पत्रकार हेमचंद्र पांडेय की मुठभेड़ में हुई हत्या के बाद तत्काल नोटिस जारी करते हुए हेमचंद्र को पत्रकार मानने से ही इंकार कर दिया था।
गोष्ठी के आखिर में पत्रकार हेमचंद्र की याद में हर साल दो जुलाई को एक व्याख्यान माला शुरु करने की घोषणा की गई।


इस गोष्ठी को समायकि वार्ता से जुड़ी पत्रकार मेधा, उत्तराखंड पत्रकार परिषद के सुरेश नौटियाल, जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसायटी के शाह आलम और ‘समयांतर’ के संपादक पंकज बिष्ट, पीयूसीएल के संयोजक चितरंजन सिंह ने भी संबोधित किया।


गोष्ठी का संचालन पत्रकार भूपेन ने किया। इस कार्यक्रम में बड़ी तादात में पत्रकार, साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता भी मौजूद थे।

जर्नलिस्ट फॉर पीपुल की ओर से जारी

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विश्वदीपक (9910540055)