Wednesday, November 19, 2008

लक्ष्‍मी की जिद



लक्ष्‍मी अपने साथ हुए अन्‍याय का प्रतिकार करना चाहती है। पिछले साल 24 नवंबर को सरे राह कुछ मध्‍यम वर्गीय कथित शहरियों ने उसका चीरहरण किया था। उसके शरीर पर वस्‍त्र का एक टुकड़ा भी नहीं रहने दिया गया था। शहरियों की यह नाराजगी इसलिए थी कि लक्ष्‍मी असम की राजधानी गुवाहाटी में रैली निकाल रही उस आदिवासी टीम में शामिल थी जो आदिवासियों के लिए अपनाए जा रही गलत नीतियों का विरोध कर रही थी। लोकतांत्रिक देश में लोकतांत्रिक तरीके से किए जा रहे विरोध प्रदर्शन से नाराज कुछ सभ्‍य समाज के लोगों ने एक आदिवासी महिला को सरे बाजार नंगा कर अपने श्रेष्‍ठ होने का परिचय दिया था। जब कुछ ऐसी ही स्थिति हजारों साल पहले महाभारत में आई थी जब कौरवों की सभा में दुर्योधन ने द्रौपदी का चीरहरण किया तब इसका नतीजा भीषण युद़ध और अंतत: कौरवों की शर्मनाक पराजय के रूप में सामने आया था। इस बार भी लक्ष्‍मी ने बदला लेने की ठानी है, लेकिन व्‍यक्तिगत तौर पर नहीं। यह काम कानून और सरकार का है। मुख्‍यमंत्री निवास से महज कुछ ही दूरी पर हुए इस कांड पर साल बीतने के बावजूद किसी को गिरफ़तार तक नहीं किया जा सका। यह लोकतांत्रिक सरकार की हार है। लेकिन लक्ष्‍मी को अब भी लोकतंत्र पर भरोसा है।

यही वजह है कि इस लड़ाई को निजी नहीं सार्वजनिक हित के लिए लड़ना चाहती है। वह उन महिलाओं में नहीं है जो अपमान के बाद शर्म के चलते खुदकुशी कर लें या खुद को किसी को मुंह दिखाने लायक न समझें। लक्ष्‍मी लोकतांत्रिक तरीके से सम्‍मान पाने की लड़ाई लड़ना चाहती है। वह असम की तेजपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ना चाहती है। इसके लिए उसे असम यूनाइटेड डेमोक्रेट फ्रंट का समर्थन भी मिल गया है।

जरा सोचिए अगर वह आगामी लोकसभा चुनाव जीत गई और एक सांसद की तरह उसी क्षेत्र में दौरा किया जहां उसका चीरहरण किया गया था, तो वहां के उन वाशिंदों के दिल पर क्‍या बीतेगी जिन्‍होंने यह कृत्‍य किया और जिन्‍होंने होते हुए देखा। और सबसे बड़ी बात, लक्ष्‍मी के मन को कितनी बड़ी तसल्‍ली मिलेगी कि उसे एक सांसद के तौर पर जो सम्‍मान मिलेगा उसकी तेज धारा में वह सारा अपमान मिट़टी के धब्‍बे की तरह धुल जाएगा। लक्ष्‍मी को हम सबको समर्थन देना चाहिए, हम उसके लिए वोट भले ही न कर पाएं पर नैतिक रूप से उसका पक्ष जरूर ले सकते हैं। खासकर यह देखते हुए कि देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुद भी असम से ही राज्‍यसभा के लिए चुने गए हैं। भले ही उन्‍होंने लक्ष्‍मी के साथ घटी इस घटना पर कोई भी टिप्‍पणी न की हो।

Sunday, November 9, 2008

अभी तो बस इतना ही

दोस्‍तो,
अभी तो बस इतना ही कहना चाहता हूं कि बहुत दिनों से लिख नहीं पाया इसका खेद है। दिल से माफी मांगता हूं। इसका एक कारण तो यह था कि कुछ घरेलू काम ज्‍यादा समय मांग रहे थे और दूसरा मुख्‍य कारण यह था कि जिन मुद़दों पर लिखने का मन था वे जितना समय मांग रहे थे उतना देने के लिए था नहीं। बहरहाल, अब उम्‍मीद है कि समय निकल पाएगा। मैं कई विषयों पर लिखना चाहता हूं। राज ठाकरे की मराठी जिद, साध्‍वी प्रज्ञा ठाकुर की तथाकथित राष्‍टीय अस्मिता की जिद, बराक ओबामा के अश्‍वेत और काले लिखे पर मत भिन्‍नता आदि। लेकिन थोड़ा सा समय चाहिए। यह पोस्टिंग केवल इसलिए ताकि अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकूं।
सादर आप सभी का
अमन