Tuesday, June 22, 2010

इस व्‍यवस्‍था में तो यही होगा

कांग्रेस ने पहले ही कह दिया था कि भोपाल गैस हादसा और उसके बाद होने वाला सारा घटनाचक्र व्‍यवस्‍‍थागत खामियों का नतीजा था, और हम सारे यानी भोपाल के गैस पीडितों, उनके आंदोलन के समर्थकों से लेकर मीडियाकर्मियों तक यह खुशफहमी पाल बैठे थे कि बिना व्‍यवस्‍था बदले हमें इंसाफ मिल जाएगा,
आखिरकार वही हुआ जो इस व्‍यवस्‍था में होना था, महज 6 फीसदी लोगों को मुआवजे की मरहमपट़टी, लेकिन असल गुनहगार अब भी ठहाके मारकर हंस रहे हैं, चाहे वह अमेरिका में बैठा एंडरसन हो या अपने देश में घूम रहा केशुब महिंद्रा,
आखिर कांग्रेस और मध्‍यप्रदेश की भाजपा सरकार के मंत्री जो मंत्र्ीसमूह में शामिल थे, इस बात पर क्‍यों खामोश रहे कि एंडरसन की निजी संपत्ति कुर्क की जाए, डाउ केमिकल से हर्जाना वसूला जाए, यूनियन कार्बाइड की भारतीय हिस्‍सेदारी खरीदने वाली एवरेडी को भी इस जुर्माने का हिस्‍सा बनाया जाए और केशुब महिंद्रा की कंपनी से भी भारीभरकम जुर्माना वसूल कर यह कडा संकेत दिया जाए कि भविष्‍य में अगर ऐसा कुछ हुआ तो उसके जिम्‍मेदारों को कतई बख्‍शा नहीं जाएगा,
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, क्‍योंकि आज भी वही व्‍यवस्‍था है जो 7 दिसंबर 1984 को एंडरसन को गिरफ़तार करने और महज कुछ ही घंटों में गेस्‍टहाउस में रखकर वीआईपी की तरह सरकारी हवाईजहाज से दिल्‍ली के लिए रवाना करने की जिम्‍मेदार थी, केवल नाम और चेहरे बदले हैं व्‍यवस्‍‍था नहीं, यह असलियत भोपाल और देश की जनता जितनी जल्‍दी समझ ले उतना अच्‍छा होगा,
भोपाल गैस कांड से पीडित 5 लाख से अधिक लोग आज केवल कांग्रेस और भाजपा सरकारों को कोस ही सकते हैं, लेकिन कल यही लोग स्‍थानीय नेताओं और उनके ठेकेदारों के बहकावे में आकर एक बार फिर इन्‍हीं पार्टियों को वोट देंगे और इसी व्‍यवस्था को फिर से खडा कर देंगे, आखिर इन्‍हीं लोगों के वोट के दम पर ये नेता भोपाल और दिल्‍ली की कुर्सियों पर बैठे हैं और लाचार वर्तमान तथा खौफजदा भविष्‍य की कीमत पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं,
देश के दूसरे हिस्‍सों के जो लोग भोपाल की लडाई को यह समझकर देख रहे हैं कि इसका हमसे क्‍या लेनादेना उन्‍हें यह नहीं भूलना चाहिए कि सत्‍ता के ये दलाल एक दिन उन्‍हें ही इसी तरह कीडेमकोडों की तरह तडपकर मरने पर मजबूर कर देंगे और तब उन्‍हें इस लडाई में न शामिल होने का अफसोस होगा,
जब नर्मदा आंदोलन के कार्यकर्ता सरदार सरोवर बांध के विरोध में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे थे तब कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि यह तय करना कोर्ट का नहीं सरकार का काम है कि देश का विकास किस तरह का होना चाहिए, इस बुनियादी फैसले से तभी समझ जाना चाहिए था कि आम जनता के दुखदर्द और उनके आंसुओं का देश के विकास और पूंजीपतियों की सरकार से कोई लेना देना नहीं है, जब तक जनता जुनून बनकर इस व्‍यव्‍स्‍था को नहीं बदलेगी उसे इसी तरह जुल्‍म और जिल्‍लत बर्दाश्‍त करनी पडेगी, लेकिन याद रखने वाली बात है कि एक दिन स्‍पार्टकस ने भी बगावत कर ही थी, आखिर हम कब तक सहन करेंगे,,,,,

Friday, June 18, 2010

सारी खामी व्‍यवस्‍था की है

भोपाल गैस कांड के बाद वारेन एंडरसन की गिरफ़तारी और बाद में सरकारी हवाईजहाज से उसे भोपाल से दिल्‍ली और दिल्‍ली से अमेरिका सुरक्षित भेजने को कांग्रेस ने व्‍यवस्‍थागत खामी का नतीजा बताया है, एकदम सटीक बात, पता नहीं क्‍यों कांग्रेस की इस सनसनीखेज स्‍वीकारोक्ति पर मीडिया वालों या विपक्ष के कान खडे नहीं हुए, कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं, कोई प्रतिक्रिया नहीं,
कांग्रेस ने सच ही कहा, अब आप शुरू से लें, भोपाल में दो और तीन दिसंबर की रात करीब 1 बजे गैस रिसी, सुबह पांच बजे एफआईआर दर्ज कर ली गई, इसमें पुलिस ने धारा 304 लगाई जिसमें कम से कम 10 साल कैद का प्रावधान है, लेकिन व्‍यवस्‍थागत खामी यहीं से शुरू हो गई, सरकार कांग्रेस की थी, केंद्र में भी और प्रदेश में भी, सबको पता था कि जो धारा एफआईआर में लग गई वह सबके गले पड जाएगी, एंडरसन के भी, और आगे भारत में होने वाले अमेरिकी निवेश के भी, सो सरकार ने आनन,फानन में धारा में जरूरी छेडछाड करवाई, यानी 304 के आगे एक छोटा सा ए और जोड दिया ताकि एंडरसन या यूनियन कार्बाइड के किसी अन्‍य अधिकारी को ज्‍यादा तकलीफ न पहुंचे, बकौल खुद अर्जुन सिंह, हम एंडरसन को परेशान नहीं करना चाहते थे, व्‍यवस्‍थागत खामी,
बात और आगे चलेगी इन खामियों के बारे में,

Sunday, June 13, 2010

टृक हादसा ही तो है भोपाल गैस कांड

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस एएम अहमदी के इस फैसले पर काफी हायतौबा मचाई जा रही है कि उन्‍होंने भोपाल गैस हादसे से जुडी धाराओं में बदलाव कर इसे मामूली टृक हादसे सरीखा बना दिया, मुझे लगता है कि उन्‍होंने ठीक ही किया, हमारे देश में कानूनों और उनका पालन करवाने वालों का जो हाल है उसे देखते हुए इन दोनों में कोई फर्क नहीं है,
अगर हमारे यहां टृक हादसे होने बंद हो जाएं तो भोपाल गैस हादसा भी नहीं होगा, शायद अहमदी अपने फैसले से देश को यही संदेश देना चाहते थे, हालांकि इस फैसले से यूनियन कार्बाइड और उससे जुडे अधिकारियों, नेताओं को जो फायदे हुए या खुद अहमदी को जो कुछ अतिरिक्‍त मिला वह जांच का विषय हो सकता है
आप देखें कि सडक पर होने वाले अधिकांश हादसों के लिए हमारा वही तंञ जिम्‍मेदार है जो भोपाल गैस हादसे के लिए जिम्‍मेदार है, इसकी शुरुआत डाइवर को मिलने वाले लाइसेंस से होती है, गलत आदमी को लाइसेंस देने का अर्थ है भविष्‍य में होने वाले हादसे को न्‍यौता देना, ठीक इसी तरह सत्‍तर के दशक में भोपाल के ठीक बीचोंबीच घातक कीटनाशक तैयार करने वाली यूनियन कार्बाइड को मंजूरी देकर तत्‍कालीन नेताओं, अधिकारियों ने भविष्‍य में एक हादसे की जमीन तैयार कर दी थी,
यह पहली गलती काफी हद तक ठीक की भी जा सकती थी अगर गलत लाइसेंस मिलने के बावजूद सडक पर चल रहे वाहन की मेंटनेंस, स्‍पीड और डाइवर के नशे में होने या न होने के बारे में यातायात पुलिस अपना काम सही करती, यानी वाहन के ब्रेक फेल नहीं होते, वह समय पर रुक जाता और डृाइवर होशोहवाश में रहता तो तय था कि हादसा रोका जा सकता था,
ठीक इसी तरह अगर यूनियन कार्बाइड के मामले में प्रदूषण नियंञण के अधिकारी व खुद यूसी के अधिकारी समयसमय पर यह जांच करते कि कंपनी में मेंटनेंस सही ढंग किया जा रहा है, लीकेज नहीं हो पा रहा है, सुरक्षा मानकों का पालन हो रहा है तो यह हादसा नहीं हुआ होता,
लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, और एक मामूली सडक हादसे की ही तर्ज पर भोपाल गैस हादसा हो गया, सडक हादसे में चार लोग मरते हैं, यहां 25 हजार जानें गईं, लेकिन कारण कमोबेश वही था, लापरवाही, भ्रष्‍टाचार और खुदगर्जी,

जारी

Saturday, June 12, 2010

आखिर एंडरसन ने किया क्‍या है

भोपाल गैस हादसे के लिए इन दिनों हर कोई एंडरसन के पीछे हाथ धोकर पडा हुआ है, मानो उसे पकड लिया तो भोपाल में हुई 25 हजार मौतों और लाखों लाइलाज बीमारियों का हल मिल जाएगा, दुख तो इस बात का है कि भोपाल में गैस हादसा होने देने के लिए एंडरसन की यूनियन कार्बाइड को जिन् लोगों की लापरवाही और जिल्‍लत भरी लालच ने इजाजत और मौका दिया उन्‍हें कोई क्‍यों नहीं पकड रहा है,
आखिर केशब महिंद्रा ही वह शख्‍स था जो तब यूनियन कार्बाइड का चेयरमैन था और जाहिर तौर पर भारत में कंपनी के हर मुनाफे की तरह उससे होने वाली तबाही के लिए जिम्‍मेदार भी, अगर वह आज महिंद्रा और महिंद्रा का चेयरमैन बनकर करोडों रुपए का मालिक बना बैठा है तो क्‍या मीडिया की यह जिम्‍मेदारी नहीं बनती कि एंडरसन के ही बराबर उसे भी जिम्‍मेदार समझें और एंडरसन के प्रत्‍यर्पण की ही तर्ज पर देश में मौजूद इस अदालत की ओर से दोषी करार दिए गए अपराधी को सजा का हकदार बनाने की मुहिम छेडें,
लेकिन आज मीडिया के लिए महिंद्रा विज्ञापन का एक बडा स्रोत है जबकि एंडरसन के खिलाफ अभियान छेडनें में नुकसान नहीं फायदा ही फायदा है, सो सारे अखबार और चैनल देशी अपराधियों को छोडकर अमेरिका में जा बसे एंडरसन के पीछे हाथ धोकर पडे हैं, सवाल इस बात का है कि जो केशब महिद्रा 84 में यूनियन कार्बाइड के हादसे के लिए दोषी ठहराया जा चुका है उसकी तमाम कंपनियों को किस आधार पर देश में चलने की मंजूरी दी जा रही है आखिर इस बात की क्‍य गारंटी है कि उसकी कंपनियों से देश में ऐसे और भोपाल गैस हादसे नहीं होंगे,

जारी