Saturday, May 31, 2008

हमारी नदियों पर मंडराता खतरा


नदियां अब अविरल नहीं बहतीं। एक समय था जब लोगों को नदियों पर भरोसा था कि वह अपने मार्ग से विचलित नहीं होगी और गंतव्य पर जरूर पहुंचेगी। लेकिन यह लोगों की करतूतों का ही नतीजा है कि दुनिया की सबसे महान नदियां तक सुरक्षित समुद्र में मिल सकेंगी इसका कोई भरोसा नहीं है। अमेरिका और मैक्सिको की सीमाओं पर बह रही रियो ग्रेन्डे नदी अक्सर मैक्सिको की खाड़ी तक पहुंचने से पहले सूख जा रही है। और ऐसा संकट झेल रही यह अकेली बड़ी नदी नहीं है। हाल यह है कि भारत की सर्वाधिक धार्मिक महत्व वाली गंगा जिसे हमने मां का दर्जा दिया हुआ है और सिंधु जो नदियों के पिता माने जाते हैं समेत नील, मरे डार्लिंग व कोलाराडो 10 बड़ी नदियां बांधों, सिंचाई व शहरों की प्यास बुझाने की तमाम योजनाओं के चलते सूखने की कगार पर हैं।


10 प्रमुख नदियां:
नदी लंबाई (किमी) प्रभावित आबादी संबंधित देश

सालवीन- 2800 60 लाख चीन, म्यामांर, थाइलैंड
दानुबी 2780 81 क़रोड़ रोमानिया समेत 19 देश
ला प्लाटा 3740 10 करोड़ ब्राजील, अर्जेंटीना, पेरुग्वे
रियो ग्रेन्ड, रियो ब्रेवो 3033 1 करोड़ अमेरिका, मैक्सिको
गंगा 2507 20 करोड़ नेपाल, भारत, चीन, बांग्लादेश
सिंधु 2900 17 करोड़ भारत, चीन, पाकिस्तान
नील लेक विक्टोरिया 6695 36 करोड़ 10 देश
मुरे डार्लिंग 3370 20 लाख आस्ट्रेलिया
म्कांग लेनसंग 4600 57 क़रोड़ चीन, म्यामांर, थाइलैंड, कंबोडिया
यांग्त्से 6300 43 करोड़ चीन
रिपोर्ट:
यह रिपोर्ट विश्‍व प्रकृति निधि ने तैयार की है। इसके लिए आठ अंतरराष्‍ट्रीय सर्वेक्षण रपटों के नतीजों का अध्ययन किया गया। दो हजार से अधिक लेखकों, शोधकर्ताओं व समीक्षकों की रपटों के आधार पर 225 नदी घाटियों के लिए सर्वाधिक अहम 6 खतरों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
मुख्य बिंदु: - आज नदियों के किनारे रहने वाली आबादी का 41 फीसदी हिस्सा संकट में है;

- बीते 50 सालों में मानव ने नदियों व उससे जुड़ी पारिस्थितिकीय को जितना नुकसान पहुंचाया है उतना अब तक इतनी अवधि में कभी भी नहीं पहुंचाया गया।
- दुनिया की 10 हजार ताजे पानी की जीवों व वनस्पतियों की प्रजातियों में से 20 फीसदी नष्‍ट हो चुकी हैं। - दुनिया की 177 बड़ी नदियों में से महज 21 (12 फीसदी) समुद्र तक बिना बाधा के बह पा रही हैं।


ये हैं प्रमुख खतरे और उनके समाधान
1- अत्यधिक दोहन: कृषि व घरेलू उपयोगों के लिए नदियों के पानी के अत्यधिक दोहन से यह खतरा हो गया है कि रियो ग्रेन्डे तथा गंगा नदियों पूरी तरह सूख सकती हैं;
2- बांध व ढांचागत निर्माण: नदियों पर बांध व अन्य ढांचागत निर्माण के चलते सालवीन, ला प्लाटा तथा दानुबी नदियों पर संकट आ खड़ा हुआ है।
3- आक्रामक प्रजातियां: कई तरह की आक्रामक प्रजातियों के चलते मुरे डार्लिंग नदी की पारिस्थतिकी संकट में जलवाय परिवर्तन – जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले तामपान बढ़ोतरी ने सिंधु व उसके प्रभाव क्षेत्र की अन्‍य हिमालयी नदियों के लिए खतरे की घंटी बजा दी है। इसके चलते नील लेक विक्‍टोरिया के लिए मछली उत्‍पादन तथा जल आपूर्ति में गंभीर संकट की स्थिति है।

4- अत्यधिक मछली आखेट: मछली के शिकार में बेतरतीब बढ़ोतरी, मछली के अधिकारों का असंतुलित बंटवारा तथा मछलियों के अत्यधिक सेवन से मेकांग जैसी नदियों व उनके पारिस्थितिकीय पर गंभीर असर पड़ा है। प्रदूषण: चीन की यांग्त्से नदी व उसकी पूरी घाटी भारी औद्योगीकरण, बांध व गाद के कारण प्रदूषण की चपेट में है। यह दुनिया की सर्वाधिक प्रदूषित नदी मानी जाती है।


समाधान: प्राकृतिक बहाव सुनिश्चित करना, जल आवंटन व अधिकारों को बेहतर करना, जल उपयोग की क्षमता बढ़ाना, जल सेवाओं का भुगतान तय करना, कम पानी वाली फसलों को प्रोत्साहन, ऐसी कृषि सब्सिडी खत्म करना जिनसे अत्यधिक जल दोहन वाली खेती होती हो, ढांचागत निर्माण का विकल्प तलाशना, बांधों का आकार छोटा रखना, तकनीकी बदलाव, जंगलों में बढ़ोतरी, नदियों, तालाबो व अन्य जल क्षेत्रों का संरक्षण, पारिस्थितिकी को बेहतर करने के उपायों से ही जैव विविधता पर पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के असर को कम किया जा सकेगा। लेकिन ये तमाम समाधान तब तक प्रभावी नहीं होंगे जब तक सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक सीमाओं से परे जाकर सहभागी रवैया नहीं अपनाया जाएगा।


कैसे हैं पिता सिंधु के हाल:


भारतीय प्रायद्वीप की सभ्यता की सबसे बड़ी पहचान मानी जाने वाली सिंधु तिब्बत में मानसरोवर से शुरू होती है और 3200 किमी का सफर तय कर कश्‍मीर व पाकिस्तान से होते हुए कराची के पास अरब सागर में समा जाती है। इसका बेसिन क्षेत्र करीब 11 लाख 65 हजार वर्ग किमी में फैला हुआ है। पाकिस्तान की जीवन रेखा मानी जाने वाली यह नदी अपनी सहायक नदियों मसलन चेनाब, रावी, सतलुज, झेलम व ब्यास के साथ पंजाब, हरियाणा व हिमाचल के लिए बेहद अहम भूमिका निभाती है। पहले सरस्वती भी इनमें शामिल थी और तब सिंधु को सप्तसिंधु कहा जाता था। माना जाता है कि प्राचीन काल में सिंधु कच्छ के रण में भी बहती थी। इसके किनारों पर अब तक 1052 शहरों की खोज की जा चुकी है।

विशेषताएं:
- सिंधु का अनुमानित वार्षिक बहाव 207 घन किमी माना जाता है; इसका बेसिन वि6व में सर्वाधिक सूखा माना जाता है। सिंधु व इसकी ज्यादातर सहायक नदियां काराकोरम, हिंदु कुश तथा तिब्बत, कश्‍मीर व पाकिस्तान के उत्तरी भागों के ग्लेशियरों पर आधारित हैं। - सिकंदर के आक्रमण के समय सिंधु घाटी में घने जंगल हुआ करते थे, लेकिन सभ्यता के विकास के साथ-साथ जंगलों का तेजी से विनाश हो गया; आज शिवालिक पहाड़ियों पर हो रहा अतिक्रमण इसकी ताजा मिसाल है। सिंधु की बेसिन में मौजूद मूल जंगलों का 90 फीसदी हिस्सा खत्म हो चुका है जो जलवायु परिवर्तन तथा पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने में सहायक हो सकता था – खास तरह की डाल्‍िफन की प्रजातियां व हिल्‍स समेत कई स्‍वादिष्‍ट मछलियां भी सिंधु में मिलती हैं।‍
- हजारों साल पहले सिंधु के पानी के इस्तेमाल के लिए नहर बनाने का सिलसिला शुरू हो गया था। भारत-पाक बंटवारे के बाद 1960 में हुई जल बंटवारा संधि के मुताबिक पाकिस्तान को नि6चित पानी देने के लिए दो बांध बनाए गए। पहला झेलम पर मंगला बांध तथा दूसरा सिंधु पर तरबेला बांध। इस संधि के मुताबिक सतलुज, ब्यास व रावी पर भारत का नियंत्रण माना गया जबकि झेलम, चिनाब व सिंधु पर पाकिस्तान का।
- सिंधु में 147 मछलियों की प्रजातियों के अलावा 25 जलीय जीव मिलते हैं।
- जलवायु परिवर्तन, पानी के बढ़ते इस्तमाल व घटती मात्रा के भारत-पाक के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है; साथ ही हरियाणा, पंजाब व राजस्थान के बीच भी जल बंटवारे को लेकर तनाव की स्थिति बनी रहती है।
विवाद - जम्मू कश्‍मीर में पाक सीमा के पास डोडा जिले में चिनाब नदी पर बनने वाले बगलिहार बांध से भारत-पाक रिश्‍तों में कड़वाहट आ गई है। यह राज्य में बनने वाले 11 बांधों में से एक है, इनमें से 9 चिनाब पर बनने वाले हैं; निश्चित ही इससे न केवल नदी के बहाव पर फर्क पड़ेगा बल्कि उसकी समूची नदी घाटी संरचना प्रभावित होगी।

खतरा: हिमालय के ग्लैशियर पर निर्भरता के कारण सिंधु व इसकी सहायक नदियों पर जलवायु परिवर्तन का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। तापमान में बढ़ोतरी के चलते आने वाले वर्षों में कई ऐसे बड़े ग्लेशियर विलुप्त हो जाएंगे जो सिंधु व सहायक नदियों को 70 से 80 फीसदी पानी की आपूर्ति करते हैं। इसके चलते हरियाणा, पंजाब, हिमाचल व पाकिस्तान के बड़े हिस्से में पानी का गंभीर संकट हो जाएगा। - पंजाब, हरियाणा के बेसिन में पानी के अत्यधिक दोहन के चलते पहले ही स्थिति गंभीर हो चुकी है। कई जिलों में पानी की क्षारीयता खतरे के स्तर पर पहुंच चुकी है।


और ये है हाल गंगा मां का :
मध्य हिमालय ने निकलकर नेपाल, भारत, चीन व बांग्लादेश होते हुए 2507 किमी का सफर तय कर बंगाल की खाड़ी में मिलती है। इसका धार्मिक, आर्थिक व सांस्कृतिक महत्व काफी ज्यादा है। माना जाता है कि दुनिया की 8 फीसदी आबादी इसके जलग्रहण क्षेत्र में बसती है।

विशेषताएं - मछलियों की 140 प्रजातियां
- मीठे पानी में पाई जाने वाली डाल्फिन
- 35 सरीसृप तथा 42 स्तनधारी प्रजातियां
- गंगा व ब्रह्मपुत्र का जलग्रहण क्षेत्र संयुक्त तौर पर दुनिया का सबसे बड़ा जैव विविधता वाला क्षेत्र है।
खतरा: - गंगा व उसकी सहायक नदियों का अमूमन 60 फीसदी पानी कृषि संबंधी कामों के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
- बांग्लादेश सीमा से महज 18 किमी दूर बने फरक्का बैराज से गंगा में पानी में मासिक बहाव 2213 घनमीटरसेकंड से घटकर 316 घनमीटरसेकंड हो गया है।
- टिहरी बांध से सिंचाई के लिए इस्तेमाल होने वाले पानी के अलावा 270 मिलियन गैलन पानी हर दिन पेयजल के रूप में इस्तेमाल होता है।

- अत्यधिक जल दोहन से गंगा में रहने वाली मछलियों क 109 प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर हैं।
- नदी जोड़ परियोजना में गंगा के शामिल होने से आने वाले समय में इसका पानी और कम होने की आशंका है।
- हिमालय के ग्लेशियर गंगा के पानी में 30-40 फीसदी का योगदान करते हैं; जलवायु परिवर्तन के चलते इसमें भारी कमी आने का अंदेशा है।

2 comments:

rakhshanda said...

सही कहा है, जायज़ है, बहुत ही चिंताजनक स्थिति है.

Arun Aditya said...

बहुत सार्थक सवाल उठाया है। यह हम सब की चिंता का विषय है।