उजाला छड़ी, खबर लहरिया, अपना पन्ना, दिशा संवाद, गांव सभा, गांव की बात, कलम, पंचतंत्र यह सूची काफी लंबी है। ये नाम हैं उन कुछ प्रकाशनों के, जो देश के अलग-अलग हिस्सों में वैकल्पिक मीडिया के रूप में लंबे समय से सफलतापूर्वक सूचना देने में अपनी भागीदारी निभा रहे हैं। मुख्यधारा मीडिया खासकर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक में आए क्रांतिकारी बदलाव के बावजूद देश के एक बड़े हिस्से को आज भी अपने मतलब की जरूरखबरों से वंचित रहना पड़ रहा है। अगर हम इन वैकल्पिक मीडिया के प्रकाशनों के विषय वस्तु व जानकारियों पर नजर डालें तो पता चलेगा कि गांव, खेती, मजदूर, पलायन, पंचायत, महिला, सूचना का अधिकार, आदिवासी, शिक्षा, बच्चे आदि ऐसे कई महत्वपूर्ण विषय हैं जिनपर इन प्रकाशनों में ध्यान दिया जाता है। जाहिर सी बात है कि अगर इन विषयों पर मुख्यधारा मीडिया ध्यान दे रहा होता तो इन प्रकाशनों का अस्तित्व में आना और बना रहना संभव ही नहीं था।
हम यहां मुख्यधारा मीडिया की कमियों या खासियत की बात नहीं कर रहे, हम देश में जगह-जगह चल रहे छोटे-छोटे ऐसे सूचना प्रयासों की जानकारी आपको देना चाह रहे हैं जो आम लोगों की जरूरत पूरा करने में जी-जान से लगे हैं। इंटरनेट, विज्ञापन, टीवी और डिजिटल रेखा के उस पर रहने वाले आम लोगों की सूचना जरूरतें पूरी करना यूं भी संभवत: मुख्यधारा मीडिया के एजेंडे में नहीं है। आइए कुछ प्रयासों पर नजर डालते हैं। उजाला छड़ी एक टेबुलाइड अखबार है, जो जयपुर से प्रकाशित होता है। इसका उद्देश्य ग्रामीणों की उन सूचना जरूरतों को पूरा करना है जो मुख्यधारा मीडिया से पूरी नहीं हो पातीं। जनता के लिए निकाले जा रहे इस मासिक ग्रामीण् समाचार पत्र को निकलते 14 पूरे हो चुके हैं। इस बीच इसने कई तरह के उतार-चढ़ाव देखे। लेकिन आज यह सफलतापूर्वक राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्र में पंचायती राज को लोकतांत्रिक, उत्तरदायी और जनभागीदारीपूर्ण बनाने, सूचना के अधिकार की जनसुनवाईयों को सार्वजनिक करनेह, महिला आंदोलन की सफलताओं की छोटी-छोटी कहानियां प्रकाशित कर अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रहा है। इसकी संपादिका ममता जेतली जो शुरू से ही इस मुहिम में शामिल रही हैं, को हंगर प्रोजेक्ट की ओर से पंचायती राज में महिलाओं की भूमिका पर लेखन के लिए दो लाख रुपयों का पुरस्कार मिला है। वह सारी राशि भी इसी अखबार को चलाए रखने में झोंक दी गई है।
उजाला छड़ी के एक अंक की एक बानगी इसे समझने के लिए काफी होगी। इसके पहले पेज पर महिला यौन हिंसा के खिलाफ जारी मुहिम की जानकारी है, साथ ही जयपुर में चलाए जा रहे 'आपरेशन गरिमा' के बारे में भी बताया गया है। इसमें यौन हिंसा की शिकार लड़कियों, महिलाओं की सहूलियत के लिए टेलीफोन नंबर दिए गए है, जिनपर वे शिकायत दर्ज कर सकती हैं। अखबार के संपादकीय में राजनीतिक टिप्पणियों की परंपरा से बचते हुए रोशनी और इंद्रा नामक दो सगी बहनों को तलाक के बाद मिलने वाले गुजारे भत्ते की सफल संर्घष गाथा बताई गई है। यह जानकारी ग्रामीण क्षेत्र की कई दूसरी महिलाओं के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकती है। अखबार में खेमीबाई की कहानी एक पूरे पेज में दी गई है जिसे महिला कार्यकर्ताओं तथा पंचायत के सम्मिलित प्रयासों के बाद डायन कहलाने के अभिशाप से मुक्ति मिली है। अखबार की अन्य महत्वपूर्ण खबरों में चित्तौड़गढ़ में पंचायत स्तर पर सूचना के अधिकार की लड़ाई, केंद्र सरकार द्वारा रोजगार गारंटी कानून बनाने की मंशा के साथ-साथ एक ढाणी की महिलाओं द्वारा पानी और स्कूल की कमी आपसी सहभागिता से दूर करने की सफल कहानी भी शामिल है। उजाला छड़ी कुल 8 पन्नों का अखबार है जिसमें मुख्यधारा अखबारों के विपरीत बड़े अक्षरों में खबरें छपती हैं ताकि गांव, देहात में लोग आसानी से इसे पढ़ सकें। इसकी खास बात यह है कि दूर-दराज के गांवों के इसके पाठक अपनी तमाम तरह की जिज्ञासाएं, सवाल भी संपादक के नाम पत्र में लिखते हैं, जिनसे उनकी समस्याओं, सफलताओं की जानकारी मिलती है। कई बार इस छोटे से अखबार में प्रकाशित छोटी-छोटी जानकारियां बड़े अखबारों के लिए स्कूप का भी काम करती हैं। जाहिर है कि अपने नाम के ही अनुरूप उजाला छड़ी राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में सूचनाओं का उजाला फैला रही है।
ऐसे प्रयास और भी हैं। मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले से दिशा संवाद नामक पत्रिका प्रकाशित होती है और प्रदेश के अलावा देश के कई भागों में प्रसारित होती है। दिशा संवाद भी तकरीबन एक दशक से छोटी-मोटी बाधाओं के साथ निकल रही है। फिलहाल आर्थिक कारणों से यह दिक्कत में है। इस पत्रिका की खास बात यह है कि इसके तमाम लेखक वे युवा सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो मध्यप्रदेश के तमाम जिलों में जनमुद्दों पर सक्रिय काम कर रहे हैं। दिशा संवामुद्दों की एडवोकेसी के लिए मीडिया को एक सशक्त माध्यम मानता है और सामाजिक कार्यकर्ताओं को पिछले एक दशक से छोटी-छोटी लेखन कार्यशालाओं के जरिए मुद्दों पर लेखन के लिए तैयार करता आया है। आज उसके लिए मध्यप्रदेश में तकरीबन एक सौ मुद्दाधारित लेखकों की सूची है। खास बात यह है कि दिशा संवाद के लेखक मुद्दों के प्रसार के लिए केवल इस पत्रिका को ही आधार नहीं बनाते, बल्कि वे स्थानीय मुख्यधारा अखबारों में भी निरंतर स्थान बनाते हैं। यह स्थान लेख या फीचर के रूप में न मिले तो भी इन्हें कोई अफसोस नहीं होता क्योंकि अक्सर होशंगाबाद जिले के सभी अखबारों के संपादकों के नाम के तमाम पत्र केवल इन्हीं लेखकों के लिखे होते हैं। कई बार दिशा संवाद ने अपने लेखकों के जरिए स्थानीय स्तर पर ऐसे मुद्दे उठाए हैं, जिनकी स्थानीय मीडिया को कोई खबर तक नहीं थी। मसलन, जिले में साक्षरता पर जारी एक मुहिम के सरकारी दावों की पड़ताल जब दिशा संवाद के लेखकों ने क्षेत्र में जाकर की और उसे फर्जी पाया तो अपनी पत्रिका में उसपर एक रपट जारी की। इसे जिला प्रशासन ने गंभीरता से लिया और सरकारी की विफलता के बजाय दिशा संवाद की रपट को संदेहास्पद मानते हुए दुबारा जांच करवाई। लेकिन दिशा संवाद सही साबित हुआ और जिला प्रशासन को साक्षरता मुहिम के अपने दावे वापस लेने पड़े। इसी तरह खेती का निजीकरण, जेनेटिक मॉडिफाइड बीज, आदिवासियों पर अत्याचार जैसे कई मामले हैं, जिनमें दिशा संवाद ने पहल की और सफलता हासिल की। कुल एक हजार प्रतियों वाले इस प्रकाशन से काफी कुछ सीखा जा सकता है।
इसी तरह बुंदेलखंड के चित्रकूट जिले में वनांगना नामक संस्था के सहयोग से सात स्थानीय महिलाएं पिछले दो साल से 'खबर लहरिया' नामक अखबार निकाल रही है। इसकी सफलता की कहानी इसी से आंकी जा सकती है कि इस साल यह 'चमेली देवी जैन' पुरुस्कार से नवाजा जा चुका है। बुंदेली भाषा में निकल रहे इस अखबार की प्रसार संख्या भी एक हजार ही है, लेकिन जिले के कई मुद्दों को उठाने और ग्रामीणों को स्वास्थ्य, मजदूरी, सूचना आदि की जानकारी देने में इसने कई मिसाल कायम की है। ऐसे प्रकाशनों का सिलसिला लंबा है। देवास, मध्यप्रदेश से पिछले तीन सालों से पंचतंत्र नाम मासिक अखबार निकल रहा है जिसमें केवल पंचायतों से जुड़ी जानकारियां ही दी जाती हैं। एकलव्य नामक संस्था के बैनर तले शुरू हुए इस अखबार के लेखकों में ज्यादातर पंचायती राज से जुड़े सदस्य हैं। पंचतंत्र जिले की तमाम पंचायतों के अलावा जिला व राज्य प्रशासन को भी भेजा जाता है। और अब लोगों के सफल प्रतिक्रिया से उत्साहित होकर अखबार के संपादक व राज्य के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र बंधु ने इसे संस्था के दायरे से बाहर निकालकर व्यावसायिक अखबार का स्वरूप देने का फैसला किया है। बंधु यह सुनिश्चित करते हैं कि अखबार के फैलाव से इसके उद्देश्य और प्रतिबद्धता पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
झारखंड भी इस मुहिम से अछूता नहीं है। वहां कई तरह के प्रयोग जारी हैं। संवाद मंथन नामक फीचर सेवा में हर माह मुख्यधारा मीडिया में 15 मुद्दाधारित आलेखफीचर भेजे जाते हैं। इसके लिए राज्य में जगह-जगह लेखन कार्यशालाओं के जरिए सामाजिक कार्यकर्ताओं को लेखन का प्रशिक्षण दिया जाता है। ध्यान देने वाली बात है संवाद मंथन राज्य की जेलों में बंद पोटा के शिकार बच्चों से लेकर, दिल्ली जाकर गुम होने वाली झारखंडी लड़कियों तक की तथ्यपरक जानकारियों अपने लेखों में शामिल करता है, जो मुख्यधारा मीडिया से किसी भी मायने में कमतर नहीं है। इसके अलावा गांव सभा नामक एक मासिक पत्रिका में पंचायत से जुड़े तमाम पहलुओं तथा सरकारी घोषणाओं को संक्षिप्त, सरल भाषा में आम ग्रामीणों को मुहैया कराया जाता है। रांची से ही 'खान, खनिज और अधिकार' नामक मासिक अखबार प्रकाशित हो रहा है, जिसमें राज्य में खनन से जुड़े तमाम मुद्दों पर ध्यान दिया जाता है। खासकर मजदूरों को उचित मजदूरी, खनन में विदेशी कंपनियों की दखल, खनन से जल, जंगल, जमीन को नुकसान आदि कई महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिनपर राज्य के मुख्यधारा मीडिया ने अब तक कोई विशेष रवैया नहीं अपनाया है, लेकिन इस अखबार का लक्ष्य ही ऐसे मुद्दों को उठाना है। इसी तर्ज पर राजस्थान के जोधपुर जिले से स्वराज नामक प्रकाशित द्वैमासिक पत्रिका में जमीन, जंगल, पंचायत, दलित, महिला आदि मुद्दों पर नियमित उपयोगी जानकारियां राज्य के विभिन्न जिलों के ग्रामीणों तक पहुंचती हैं। इसी राज्य में 'एकल नारी की आवाज' नामक अखबार में राज्य में जारी एकल नारी आंदोलन की खबरें स्थान पाती हैं। गौरतलब है कि राजस्थान देश का ऐसा पहला राज्य है जहां करीब 35 हजार एकल नारियों ने एकजुट होकर अपने अधिकारों का झंडा बुलंद किया है, यह अखबार उनके संर्घष का एक प्रमुख औजार है।
उत्तरांचल से भी 'मध्य हिमालय' नामक मासिक पत्रिका पिछले लंबे समय से राज्य के जनमुद्दों को उठाने में सक्रिय भूमिका निभाती आ रही है। पिथौरागढ़ से निकल रही इस पत्रिका के संपादक दिनेश जोशी खुद पत्रकार रचुके हैं तथा आजकल हिमालय स्टडी सर्किल नामक संस्था के जरिए राज्य के भिन्न मुद्दों पर काम कर रहे हैं। पत्रिका में पंचायती राज, जंगल, महिलाएं, स्वास्थ्य, रोजगार आदि बुनियादी मुद्दों पर लेख, फीचर व सरकारी जानकारियां भी शामिल की जाती हैं। इनके अलावा पुणे से 'प्रोटेक्टेड एरिया अपडेट' जिसमें देश भर के अभयारण्यों तथा जंगलों से आदमियों के रिश्तों की तथ्यात्मक जानकारियां दी जाती हैं, दिल्ली से 'डेम, रिवर एंड पीपुल' जिसमें देश भर में बांधों, नदियों तथा लोगों के मुद्दों को स्थान मिलता है, नियमित प्रकाशित होने वाले वैकल्पिक प्रकाशनों में गिने जा सकते हैं। यह सच है कि इन तमाम वैकल्पिक प्रकाशनों में से किसी की भी प्रसार संख्या एक या दो हजार से अधिक की नहीं है, लेकिन इसके पाठकों की खासियत यह है कि वे खुद को मिली जानकारियों को आगे कई गुना पाठकों तक पहुंचाते हैं। जाहिर है कि ये प्रकाशन चेन रिएक्शन की तरह जानकारियों का प्रचार-प्रसार करते हैं। मुख्यधारा मीडिया से इतर जारी इस वैकल्पिक प्रकाशनों का महत्व लगातार बढ़ता जा रहा है क्योंकि मुख्यधारा मीडिया की विषयवस्तु और आम जनता के उपयोग की जानकारियों की खाई बढ़ती ही जा रही है। शायद ये छोटे-छोटे प्रकाशन भविष्य की सामुदायिक पत्रकारिता का आधार बने।